कुंडली में केतु का प्रभाव मंगल के सामान होता है। अतः यदि केतु किसी स्वग्रही ग्रह के साथ स्थित हो तो , उस ग्रह का बल ४ गुना बड़ जाता है। यदि मंगल केतु की युति हो तो मंगल का बल दुगना हो जाता है। जो की दाम्पत्य जीवन पर बहुत प्रभाव डालती है।
१. लग्न में स्थित केतु जातक को झूठा , अल्प संतति वाला बनाता है।
२. दूसरे भाव में केतु यदि शुभ राशि व शुभ नक्षत्र में हो तथा उस पर गुरु की दृष्टि होतो , वह जातिका/जातक धनवान होता है।
३. तीसरे भाव में केतु धनदायक तथा शत्रुनाशक है।
४. चतुर्थ भाव में वृश्चिक/धनु राशि के अतिरिक्त अन्य राशि में स्थित केतु माता और मित्रो को कष्ट देता है।
५. यदि पंचम भाव में केतु या बुध हो , और उस पर बुध या केतु की दृष्टि हो तो , वह जातिका धोखा दे सकती है।
यदि शुक्र मीन राशि में हो और उसकी युति केतु से हो तो, जातिका का ससुराल उच्च स्तरीय होता है।
७. अष्टम भाव में केतु हो और उस पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वह जातक/जातिका समाज द्वारा अपमानित
हो सकता है।
८. यदि ६ ठे भाव में केतु होतो, वह जातिका निरोगी , साहसी तथा शत्रुहंता होती है।
९. यदि सप्तम भाव में केतु होतो, उस जातिका को दाम्पत्य जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। और यदि पाप ग्रहों का भी प्रभाव होतो, पुनर्विवाह की आशंका बनी रहती है।
१०. यदि ८ वे भाव में केतु होतो, धनागम में रूकावट आती है। तथा बवासीर रोग हो सकता है। . जिस जातिका के ९ वे भाव में केतू हो, उसको पुत्र संतान का अभाव हो सकता है।
१२. दशम भाव में केतु पिता के लिए कष्टकारी होता है।
१३. यदि १० वे भाव में केतु के साथ ५ वे अथवा ९ भाव का के स्वामी के साथ होतो , उस जातक/जातिका को राजयोग के फल मिलते है।
१४. एकादश भाव में केतु होतो उस जातक/जातिका को उच्च शिक्षित , धनी तथा सम्मानित बना देता है।
१५. द्वादश भाव में केतु स्थित होतो वह जातक/जातिका समाज विरोधी कार्यों में रूचि रखते है।