कुंडली में सूर्य और सूर्य से अन्य ग्रहो का दूरीबल


सूर्य ग्रहो का राजा है तो अन्य ग्रह सूर्य के आधीन रहने वाले सूर्य के कर्मचारी है। सूर्य के अंदर इतनी ऊर्जा है कि एक साथ सभी ग्रहो को यह अस्त कर सकता है। चन्द्र से लेकर शनि तक यह 6 ग्रह साथ यदि सूर्य के साथ अंशो में बहुत नजदीक हो तो इन 6 ग्रहो को एक साथ सूर्य अस्त कर सकता है क्योंकि सूर्य प्रकाश और आग है जब ग्रह सूर्य के बहुत नजदीक आ जाते है तो सूर्य का ताप ग्रह सहन नही कर पाते जिस कारण से ग्रह अस्त हो जाते है।राहु केतु कभी अस्त नही होते।

सूर्य के बहुत नजदीक होने पर भी राहु केतु अस्त नही होते क्योंकि राहु केतु छाया ग्रह है और छाया को कोई आग या तपन भी जला नही सकती, सुखा नही सकती।कोई भी ग्रह सूर्य से लगभग 15अंश से ऊपर होने पर ही शुभ और अपनी स्थिति अनुसार बली होना है।जितना कोई ग्रह सूर्य से दूर होगा उतना ही शुभ और जितना सूर्य के अंशो में नजदीक होगा उतना ही अशुभ और कमजोर होता जाता है।

जैसे सूर्य से सातवें स्थान पर बैठा ग्रह सूर्य से बहुत दूर 180अंश की दूरी पर होता है और सूर्य की पूर्ण दृष्टि सूर्य से सातवे स्थान पर बैठे ग्रह पर होती है जिस कारण ऐसा ग्रह सूर्य की दृष्टि से दूर होने के लिए पीछे उल्टी चाल चलने लगता है मतलब वक्री चाल से चलने लगता है जिसे वक्री ग्रह कहते है और जब सूर्य के ताप से बचकर कोई ग्रह उल्टा या सूर्य से दूर होने लगता है तो उसे वक्री ग्रह कहते है वक्री ग्रह दूर जाने के कारण बली होने लगत है जितना दूर सूर्य से ग्रह वक्री होकर जाता है उतना ही वह ग्रह बली होता जाता है।

जैसे कोई व्यक्ति बहुत तेज सूर्य के प्रकाश के आगे खड़ा हो धूप में और गर्मी का मौसम हो या तापमान मौसम का गर्म हो तो व्यक्ति धूप में ज्यादा देर रहने से सूर्य की धूप (ताप) को झेल नही पायेगा और उसके शरीर का तापमान कमजोर पड़ने लगेगा और जब ऐसा व्यक्ति सूर्य की धूप (प्रकाश) से बचकर ठंडी जगह या छा में आ जायेगा सूर्य के ताप से दूर तो व्यक्ति के शरीर का तापमान धीरे धीरे बढ़ने लगेगा मतलब व्यक्ति के शरीर में बल पहले की तरह आ जायेगा और जब पहले की तरह बल शरीर में आता है तो व्यक्ति दोवारा से जोशीले स्वभाव में आ जाता है।इसी तरह सूर्य से दूर होने पर ग्रह वक्री होकर बली हो जाता है।

इस तरह सूर्य और सूर्य से ग्रहो की स्थिति अपने आप में एक विशेष महत्वपूर्ण स्थिति होती है।