विभिन्न मंत्र विभिन रोगों से मुक्ति के लिए

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।


अर्थ :हम पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का ध्यान करते हैं। हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की तरफ चलने के लिए परमात्मा का तेज प्रेरित करे।

गायत्री मंत्र के नियमित जाप से त्वचा में चमक आती है। नेत्रों में तेज आता है। वहीं रोगों से मुक्ति भी मिली है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गायत्री मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मन के दुख, द्वेष, पाप, भय, शोक जैसे नकारात्मक चीजों का अंत हो जाता है। इस मंत्र के जाप से मनुष्य मानसिक तौर पर जागृत हो जाता है

गायत्री मंत्र को सिद्ध करने में कितना समय लगता हैं अथवा उस सिद्धि को प्राप्त करने की सम्पूर्ण विधी क्या हैं? गायत्री मंत्र को सिद्ध करने के लिए चौबीस लाख बार जप करना पड़ता है।

किसी भी शुभ मुहूर्त में कांसे के पात्र में जलभर कर रख लें। उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के बाद जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यदि इसी जल को किसी अन्य रोगी को दिया जाए तो उसको भी बीमारी से राहत मिलेगी।

गायत्री मंत्र से सभी को शुभ फल मिलता है लेकिन विद्यार्थियों के लिए यह मंत्र बहुत लाभदायक है। प्रतिदिन इस मंत्र का 108 बार जाप करने से विद्यार्थी सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने से आसानी होगी। विद्यार्थियों का पढ़ाई में मन न लगना, याद किया याद न रहना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याअों से मुक्ति मिलती है।

सुबह स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर पति-पत्नि सफेद वस्त्र धारण कर यौं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। इससे संतान संबंधी किसी भी समस्या से जल्दी मुक्ति मिलेगी। जिन दंपति को संतान पाने में कठिनाई आ रही है या उनसे दुखी हैं उन्हें लाभ मिलेगा।

किसी को कार्य, नौकरी में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है अौर व्यय अधिक हैं तो गायत्री मंत्र का जप करना बहुत फायदेमंद हैं। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप करने से गरीबी का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है।रोग से मुक्ति के लिए प्रतिदिन गायत्री मंत्र का कम से कम पांच माला जाप करना चाहिए और अधिक से अधिक आठ माला जाप किया जा सकता है।

पेट संबंधित रोगों का अंत करेगा : नरसिंह मंत्र



प्राशयेद्यो नरो मन्त्रं नृसिंहध्यानमाचरेत्।
तस्य रोगाः प्रणश्यन्ति ये च स्युः कुक्षिसम्भवाः॥
श्री ब्रह्माण्ड-पुराणे प्रह्लादोक्तं श्रीनृसिंह कवचं


प्रात:काल उठकर पूर्व की ओर मुख करके प्रदिक्षणा मंत्र का जाप करने से पेट दर्द से मुक्ति मिलती है. यानि कानि च पापानि, जन्‍मान्‍तर कृतानि च, तानि सर्वाणि नश्‍यन्ति, प्रदक्षिण पदे-पदे.


शिवजी की आराधना:



का मूल मंत्र तो ऊं नम: शिवाय ही है, लेकिन इस मंत्र के अतिरिक्त भी कुछ मंत्र हैं जिनसे भगवान शिव बेहद प्रसन्न हो जाते हैं.


पुराणों में भोलेबाबा प्रसन्न करने के कई मंत्र बताए गए हैं जो मनवांछित फल देते हैं. सृष्टि की उत्पत्ति स्थिति एवं संहार के भी यह आधिपति कहे गए हैं. ऐसे में अगर आप भी जीवन से हर प्रकार के कष्टों को दूर करना चाहते हैं तो शिव जी के कुछ मंत्रों का जाप करें, इन मंत्रों के जाप के प्रभु खुश होकर हर एक कष्ट को दूर कर देते हैं. कोआइये जानते हैं भगवान शिव को प्रसन्न करने के सबसे सरल एवं सिद्ध किए हुए मंत्र-


भगवान शिव को प्रसन्न करने के मंत्र:


महामृत्युंजय मंत्र:


ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।


शिव जी का मूल मंत्र:


ऊँ नम: शिवाय।।

भगवान शिव के प्रभावशाली मंत्र-
ओम साधो जातये नम:।। ओम वाम देवाय नम:।।
ओम अघोराय नम:।। ओम तत्पुरूषाय नम:।।
ओम ईशानाय नम:।। ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।।


रुद्र गायत्री मंत्र


ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥


शिव के प्रिय मंत्र-


1. ॐ नमः शिवाय।
2. नमो नीलकण्ठाय।
3. ॐ पार्वतीपतये नमः।
4. ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
5. ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।

पूजा में प्रतिदिन करें इसका करें पाठ


नमामिशमीशान निर्वाण रूपं। विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं।। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाश माकाश वासं भजेयम।। निराकार मोंकार मूलं तुरीयं। गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं।। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसार पारं नतोहं।। तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं।। स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा। लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा।। चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं।। म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं। प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि।। प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं। अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम।। त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम। भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं।। कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी।। चिदानंद संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।। न यावत उमानाथ पादार विन्दम। भजंतीह लोके परे वा नाराणं।। न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं। प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो ।