शिवपिंडी पर बेल पत्र कैसे चढाए तथा बेल पत्र तोड़ने के नियम

बेल के वृक्ष में देवता निवास करते हैं । इस कारण बेल वृक्ष के प्रति अतीव कृतज्ञता का भाव रख कर उससे मन ही मन प्रार्थना करने के उपरांत उससे बेल पत्र तोडना आरंभ करना चाहिए । शिवपिंडी की पूजा के समय बेल पत्र को औंधे रख एवं उसके डंठल को अपनी ओर कर पिंडी पर चढाते हैं ।


शिवपिंडी पर बेल पत्र को औंधे चढाने से उससे निर्गुण स्तर के स्पंदन अधिक प्रक्षेपित होते हैं । इसलिए बेल पत्र से श्रद्धालु को अधिक लाभ मिलता है । सोमवार का दिन, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा अमावस्या, ये तिथियां एवं संक्रांति का काल बेल पत्र तोडने के लिए निषिद्ध माना गया है । 

बेल पत्र शिवजी को बहुत प्रिय है, अतः निषिद्ध समय में पहले दिन का रखा बेल पत्र उन्हें चढा सकते हैं । बेल पत्र में देवतातत्त्व अत्यधिक मात्रा में विद्यमान होता है । वह कई दिनों तक बना रहता है ।

इस कालावधि में शिव-तत्त्व अधिक से अधिक आकृष्ट करनेवाले बेल पत्र, श्वेत पुष्प इत्यादि शिवपिंडी पर चढाए जाते हैं । इनके द्वारा वातावरण में विद्यमान शिव-तत्त्व आकृष्ट किया जाता है । भगवान शिव के नाम का जाप करते हुए अथवा उनका एक-एक नाम लेते हुए शिवपिंडी पर बेल पत्र अर्पण करने को बिल्वार्चन कहते हैं । इस विधि में शिवपिंडी को बेल पत्रोंसे संपूर्ण आच्छादित करते हैं ।