व्यापार विदेश तक किन ग्रह स्थितियों में जाता है ?


व्यापार या कारोवार को जितना चाहे जातक अपनी मेहनत और लगन से उन्नति की और ले जा सकता है लेकिन इस सबके लिए जरूत होती है अच्छे भाग्य की और कुण्डली में व्यापार के अच्छे योगो का होना।भाग्य के अच्छा होने के लिए नवे भाव भावेश का शुभ और बनी होना जरुरी है तो व्यापार के लिए दसवे भाव का सप्तम भाव से संबंध होना क्योंकि दसवा और सातवाँ दोनों ही भाव व्यापार के है साथ ही दसवे भाव से व्यापार के प्रबल कारक बुध, सूर्य गुरु शनि सम्बन्ध होना व् अन्य ग्रहो का के बली होने से द्वितीय भाव/द्वितीयेश , एकादश भाव/एकादशेश का बली होने से या दशमेश दशम भाव से सम्बन्ध होने से व्यापार के योग बनते है।व्यापारिक सफलता के लिए बुधग्रह का बलवान होना विशेष जरूरी है सफल व्यापार/व्यवसायी जातको की कुंडली में अधिकतर बुध कन्या, मिथुन राशि में या वर्गोत्तम स्थिति में होता है या मित्र राशि में शुभ ग्रहो से द्रष्ट होता है और बुध की ऐसी स्थिति होना व्यापारिक सफलता के लिए जरूरी भी है।

अब प्रश्न यह है कि व्यापार/व्यवसाय विदेशो तक कैसे पहुँचता है विदेशो तक पहुँचकर कैसे उन्नति करता है।जब दशमेश या दसवे भाव का सम्बन्ध बारहवे भाव या बारहवे भाव के स्वामी से शुभ स्थिति में केंद्र त्रिकोण में बने या बनता है तब जातक का व्यापार विदेशो तक पहुँचता है क्योंकि बारहवां भाव विदेश दूरस्थ स्थानो का है और दसवा भाव व्यापार का दसवे भाव/दसवे भाव के स्वामी, बारहवे भाव/ बारहवे भाव के स्वामी के साथ सातवे भाव भावेश का सम्बन्ध होने पर विदेश में पहुँचे व्यापर में बहुत उन्नति और अच्छी सफलता मिलती है क्योंकि सातवाँ भाव साझेदारी व्यापार का है और व्यापार में साझेदारी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है विदेशो से किये गये व्यापार में साझेदारी करनी होती है जब दो कई व्यापारिक पार्टिया आपस में समझोता करके व्यापार को सफल बनाती है तब व्यापार उन्नति करता है।

इस तरह व्यापार योग और ग्रह स्थितियां कुंडली में होने पर जब बलवान दसवे भाव या भावेश या दोनों का सम्बन्ध बलवान बारहवे भाव भावेश से बनता है तब व्यापार खूब उन्नति करता है।बारहवे भाव को ख़राब और नुकसान देने वाला भाव माना जाता है लेकिन यह व्यापारिक रूप से व्यापार के विस्तार करने में बहुत सहायक होता है।दशमेश दशम भाव, दशम भाव भावेश के साथ बैठे ग्रहो का बली सम्बन्ध तीसरा भाव/ भावेश से अपने देश में ही दूरस्थ शहर, राज्यो से व्यापार कराता है क्योंकि तीसरा भाव अपने देश में ही दूरस्थ स्थानों का भाव है।दसवे भाव भावेश के बारहवे भाव भावेश आदि के सम्बन्ध में यह बात महवपूर्ण होती कि नेसरिक रूप से दसवे और बाहरवें भाव भावेश का नैसर्गिक रूप से अशुभ योग या सम्बन्ध न बनाता हो साथ ही व्यापार के योग कुंडली में मजबूत हो तो व्यापार सुचारू रूप से ठीक तरह से उन्नति करता है।

व्यापार में वृद्धि के लिए कुंडली के योगकारक ग्रहो का तरह पहनना शुभ परिणाम देता है।दशमेश का रत्न विद्वान् ज्योतिषी की सलह से पहनकर दशमेश को बली करके व्यापार योग होने पर व्यापार को अच्छी मजबूती दी जा सकती है।इस तरह व्यापार के बली योग होने पर दसवे भाव/ भावेश का शुभ सम्बन्ध बारहवे भाव/भावेश से होने पर व्यापार विदेशो तक उन्नति करता है।